- मणिपाल हॉस्पिटल्स ने पूर्वी भारत का पहला एआई-संचालित इंजेक्टेबल वायरलेस पेसमेकर सफलतापूर्वक स्थापित किया
- Manipal Hospitals successfully performs Eastern India’s first AI-powered injectable wireless pacemaker insertion
- Woxsen University Becomes India’s First Institution to Achieve FIFA Quality Pro Certification for RACE Football Field
- यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने यू – जीनियस राष्ट्रीय प्रश्नोत्तरी फिनाले में प्रतिभाशाली युवाओं का किया सम्मान
- Union Bank of India Celebrates Bright Young Minds at U-Genius National Quiz Finale
दिव्यांग और दृष्टिबाधित बच्चे पहुंचे भारत-पाक सीमा पर
सभी हमलों से महफूज तनोट माता मंदिर एवं जैसलमेर में वार म्यूजियम देख हुए रोमांचित
इंदौर। शहर के संवेदनशील युवाओं के समूह ‘स्पर्श’ ने दृष्टिबाधित एवं दिव्यांग बच्चों के साथ ‘सरहद की सैर’ कार्यक्रम में भारत-पाक सीमा स्थित जैसलमेर, तनोट माता मंदिर, बाबलियान पोस्ट एवं गडीसर झील जैसे स्थानों की यात्रा की और सीमा पर तैनात भारतीय सैनिकों के प्रति उनकी देश सेवा एवं समर्पण भावना के लिए कृतज्ञता तो व्यक्त की ही, इंदौर के लोकप्रिय नमकीन और पुणे की प्रसिद्ध भाकरवड़ी के पैकेट भी भेंट किए।
स्पर्श समूह के संस्थापक रत्नेश सिधये ने बताया कि बीएसएफ से अनुमति लेकर 12 दिव्यांग एवं दृष्टिबाधित बच्चों के साथ इस यात्रा का शुभारंभ जैसलमेर और वहां से 122 किमी दूर स्थित तनोट माता के मंदिर से हुआ। तनोट माता का मंदिर वह चमत्कारिक स्थान है जहां अब तक किसी भी युद्ध के दौरान दुश्मनों के हथियार खासकर गोला-बारूद काम नहीं आए।
यहां प्रतिदिन रात्रि में भारतीय सेना के जवान पूरी श्रद्धा और तल्लीनता से आरती करते हैं। इस मंदिर में दर्शन के बाद 20 किमी दूर बाबलियान पोस्ट पहंुचे जहां मौजूद जवानों ने स्पर्श समूह के सदस्यों का जोशीला स्वागत किया और इस पोस्ट की कार्यप्रणाली की जानकारी दी।
समूह के सदस्यों ने यहां मौजूद सेना के जवानों और अफसरों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए स्मृति चिन्ह, आभार पत्र और इंदौर के नमकीन एवं पुणे की प्रसिद्ध भाकरवड़ी के पैकेट भी भेंट किए। वहां से जैसलमेर पहंुचे और दिव्यांग सदस्यों के साथ गडीसर झील में बोटिंग का आनंद भी लिया।
ऐतिहासिक जैसलमेर शहर के साथ-साथ वहां के वार म्यूजियम में पहंुचकर सेना के अस्त्र-शस्त्र को छूकर रोमांचित हुए और उससे भी ज्यादा रोमांच तब हुआ, जब वहां भारतीय सेना की पराक्रम गाथा सुनी।
इस यात्रा में सुभाष रानाडे, श्रीमती नियति रानाडे, संकल्प कुलकर्णी, दिवाकर सिधये, मलय बिल्लौरे, नचिकेत डहाळे एवं श्रीमती मैत्रेयी रत्नेश का भी उल्लेखनीय सहयोग एवं सहभाग रहा। यात्रा मंे शामिल दिव्यांगों एवं दृष्टिबाधित बच्चों ने इस पांच दिवसीय यात्रा को अविस्मरणीय एवं रोमांचकारी बताया। स्पर्श समूह की ओर से यह चैथा वार्षिक यात्रा कार्यक्रम था।